छोटे से जीवन में कितना
प्यार करूँ ,पी लूँ हाला
आने के ही साथ जगत में
कहलाया जाने वाला ,
होती देखी तैयारी
बंद लगी होने खुलते ही मेरी जीवन मधुशाला !
लाल सुरा की धार लपट सी
कह न इसे देना ज्वाला
फ़ेनिल मदिरा है ,मत इसको
कह देना उर का छाला
दर्द नशा है इस मदिरा का
विगत स्मृतियाँ साकी हैं
पीड़ा में आनंद जिसे है
आए मेरी मधुशाला !
धर्म ग्रन्थ सब जला चुकी है
जिसके अंतर की ज्वाला
मन्दिर, मस्जिद -गिरजे सबको
तोड़ चुका जो मतवाला,
पंडित मोमिन पादरियों के
फ़ंदों को जो काट चुका
कर सकती आज उसी का
स्वागत मेरी मधुशाला !
एक बरस में एक बार ही
जगती होली की ज्वाला
एक बार ही लगती बाजी
जलती दीपों की माला
दुनियावालों किन्तु किसी दिन
आ मदिरालय में देखो
दिन को होली रात दीवाली
रोज मनाती मधुशाला !
मुझे पिलाने को लाये हो
इतनी थोड़ी --सी हाला,
मुझे दिखाने को लाए हो
यही एक छिछला प्याला
इतनी सी पीने से अच्छा
सागर की ले प्यास मरूँ
सिंधु तृषा दी किसने रचकर
बिन्दु बराबर मधुशाला !
क्षीण ,क्षुद्र , क्षणभंगुर , दुर्बल
मानव मिट्टी का प्याला
भरी हुई है जिसके अंदर
कटु मधु जीवन की हाला
मृत्यु बनी है निर्दय साकी
अपने शत - शत कर फैला
काल प्रबल है पीनेवाला
संसृति है यह मधुशाला !
उस प्याले से प्यार मुझे जो
दूर हथेली से प्याला ,
उस हाला से चाव मुझे जो
दूर अधर से है हाला ,
प्यार नहीं पा जाने में है
पाने के अरमानों में
पा जाता तब ,हाय न इतनी
प्यारी लगती मधुशाला !
नहीं चाहता आगे बढ़ कर
छीनूँ औरो की हाला ,
नहीं चाहता धक्के दे कर
छीनूँ औरो का प्याला ,
साकी मेरी ओर न देख
मुझको तनिक मलाल नहीं,
इतना ही क्या कम आँखों से
देख रहा हूँ मधुशाला !
पितृ -पक्ष में , पुत्र उठाना
अर्ध्य न कर में,पर प्याला
बैठ कहीं पर जाना गंगा-
सागर में भर कर हाला ,
किसी जगह की मिट्टी भीगेतृप्ति मुझे मिल जाएगी ,
तर्पण ,अर्पण करना मुझको
पढ़ -पढ़ के मधुशाला !
सादर : बच्चन जी
धन्यवाद !
ReplyDeleteयह महाकाव्य पढवाने के लिए !