दूर कहीं से आवाज़ आई--आवाज़ जैसे तेरी हो
कानों ने गहरी सांस ली ,जीवन -बाला काँप उठी
मासूम खुशी हाथ छुड़ा कर दोनों नन्हीं बाँहें फैला कर
एक बालिका की तरह नंगे पाँव भाग उठी
पहला काँटा संस्कार का ,दूसरा काँटा लोक लाज का
तीसरा काँटा धन दौलत का ,ख़तरे जैसे कितने काँटे......
तलवों से काँटे निकालती पोर दबाती लहू पोंछती
मीलों-कोसों लँगड़ाती हुई मासूम खुशी वहाँ आ पहुँची
अगला पाँव आगे को बढ़े ,पिछला पाँव पीछे को मुड़े
आवाज़ जैसे बिल्कुल तेरी ,नज़र जैसे बिल्कुल बेगानी
असमंजस का तीखा काँटा एड़ी में इस तरह चुभ गया
कानों ने गहरी सांस ली ,जीवन -बाला काँप उठी
मासूम खुशी हाथ छुड़ा कर दोनों नन्हीं बाँहें फैला कर
एक बालिका की तरह नंगे पाँव भाग उठी
पहला काँटा संस्कार का ,दूसरा काँटा लोक लाज का
तीसरा काँटा धन दौलत का ,ख़तरे जैसे कितने काँटे......
तलवों से काँटे निकालती पोर दबाती लहू पोंछती
मीलों-कोसों लँगड़ाती हुई मासूम खुशी वहाँ आ पहुँची
अगला पाँव आगे को बढ़े ,पिछला पाँव पीछे को मुड़े
आवाज़ जैसे बिल्कुल तेरी ,नज़र जैसे बिल्कुल बेगानी
असमंजस का तीखा काँटा एड़ी में इस तरह चुभ गया
अक़्ल इल्म के नाखून हार गये ,जाने काँटा कहाँ तक उतर गया
सारा पाँव सूज गया है ,ज़हर-सा फैल रहा है
हैरान-परेशान ज़मीन पर बैठी मासूम ख़ुशी रो उठी है........
साभार : अमृता प्रीतम
इसीलिये आप अमृता प्रीतम हैं !!!
ReplyDeleteदिल को छू लेने वाली कविता.
ReplyDelete