आज उन गीतों को बाज़ार में ले आया हूँ !
आज दुकान पे नीलाम उठेगा उनका ,
आज चाँदी के तराजू में तुलेगी हर चीज़,
मेरे अफ़कार , मेरी शायरी , मेरा एहसास ।
जो तेरी जात से मनसूब थे , उन गीतों को ,
मुफ़लिसी , जिन्स बनाने पे उतर आई है ।
भीख , तेरे रुखे - रंगीं के फ़सानों के एवज़ ,
चन्द आशिया - ए - ज़रूरत की तमन्नाई है ।
देख इस कार - गहे - मेहनतो - सर्माया में ,
मेरे नग़्मे भी मेरे पास नहीं रह सकते ।
तेरे जल्वे किसी ज़रदार की मीरास सही ,
तेरे ख़ाके भी मेरे पास नहीं रह सकते ।
आज इन गीतों को बाज़ार में ले आया हूँ ।
मैंने जो गीत तेरे प्यार की ख़ातिर लिखे ॥
साभार - साहिर लुधियानवी
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