तुझी से इब्तिदा है , तू ही इक दिन इंतिहा होगा
सदा-ए-साज़ होगी और न जाने साजे-बेसदा होगा
हमें मालूम है , हम से सुनो , महशर में क्या होगा
सब उसको देखते होंगे , वो हमको देखता होगा
जहन्नुम हो कि जन्नत जो भी होगा फ़ैसला होगा
ये क्या कम है हमारा और उनका सामना होगा
निगाहे-क़हर पर भी जानो-दिल सब खोए बैठा है
निगाहे-मेहर आशिक़ पर अगर होगी तो क्या होगी
ये माना भेज देगा हमको महशर से जहन्नुम में
मगर जो दिल पे गुज़रेगी वो दिल ही जानता होगा
समझता क्या है तू दीवानगाने - इश्क़ को ज़ाहिद
ये हो जायेंगे जिस जानिब उसी जानिब खुदा होगा
साभार :जिगर मुरादाबादी
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सदा-ए-साज़ =साज़ की ध्वनि
साजे-बेसदा =ध्वनिरहित साज़
महशर =प्रलय क्षेत्र
दीवानगाने-इश्क़ =पागल प्रेमियों को
ज़ाहिद =विरक्त
जानिब =ओर
बहुत अच्छी रचना चुनी है |आप शब्द और उनके अर्थ भी देती हैं ,
ReplyDeleteयह बहुत अच्छा है समझने में सुविधा हो जाती है |
आशा
धन्यवाद आशा दी .
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत गज़ल ...
ReplyDeleteनिगाहे-मेहर आशिक़ पर अगर होगी तो क्या होगी
इस पंक्ति में आखिर में होगी की जगह होगा ही कर दें तो शायद सही लगे ...