जो था नहीं है ,जो है न होगा ,
यही है एक हर्फ़े-मुजरिमाना |
करीबतर है नमूद जिसकी
उसी का मुशताक़ है ज़माना ||
मेरी सुराही से क़तरा-क़तरा
नए हवादिस टपक रहे हैं |
मैं अपनी तस्बीहे-रोज़ो-शब का
शुमार करता हूं दाना - दाना ||
हर एक से आशना हूं लेकिन
जुदा - जुदा रस्मो - राह मेरी |
किसीका राकिब किसी का मुरकिब
किसी को इबरत का ताज़ियाना ||
न था अगर तू शरीक़े-महफ़िल ,
कुसूर मेरा है या कि तेरा ?
मेरा तरीक़ा नहीं कि रख लूं
किसी की खातिर मये - शबाना ||
हवायें उनकी , फ़ज़ाए उनकी ,
समन्दर उनके जहाज़ उनके |
गिरह भंवर की खुले तो क्योंकर ,
भंवर है तक़दीर का बहाना ||
जहाने - नौ हो रहा है पैदा
वो आलमे - पीर मर रहा है |
जिसे फिरंगी मुक़ाबिरों ने
बना दिया है क़मारखाना ||
हवा है गो तेज़-ओ-तुंद लेकिन
चिराग़ अपना जला रहा है |
वो मर्दे-दरवेश जिसको हक़ ने
दिए हैं अंदाज़े - खुस्रुवाना ||
साभार : इक़बाल
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तसबीहे-रोज़ो-शब = दिन-रात की माला
शुमार = गणना
आशना = परिचित
राकिब =सवार
मुरकिब =सवारी
ताज़ियाना =कोड़ा
ज़हाने-नौ = नया संसार
आलमे-पीर =पुराना ज़माना
मुक़ाबिरों ने =जुएबाज़ों ने
क़मारखाना =जुआखाना
मर्दे-दरवेश =साधू
हक़ =भगवान
अंदाज़े-खुस्रुआना =बादशाहों के अंदाज़
इकबाल कि खूबसूरत नज़्म
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