Tuesday, March 15, 2011

कब हुज़ूमे - ग़म से मेरी जान घबराती नहीं .....

कब   हुजूमे - ग़म   से   मेरी   जान  घबराती  नहीं 
मै तो  मर  जाऊं , करूँ  पर  क्या   मौत आती  नहीं 
कौन  है  जिसको  नहीं  डर  आहे - सोजाँ  का   मेरे
कांपता   शोला   नहीं   था   या   बर्क़  थर्राती    नहीं 
क्या हुआ बाद-अस्ल गर ज़ाहिर में है नेको-सिफ़ात
जौहरे - जाती   पर    उनका   गैर - बदजाती    नहीं 
साफ़ खूब - ओ - जिश्त कह  देता है मुँह पर आइना 
बल    बेदीदे    का    सफ़ाई   आँख   शरमाती   नहीं 
हम  सरी   करता  है   गुल आरिज़ से उसकी ऐ सबा 
दो  तमांचे  मार  कर   तू   उसको   समझाती   नहीं
पहुँचे    हैं   चाके - गरेबाँ   ता    बदामन    हर   घड़ी 
मैं  कहूँ  क्यों   कर   कि  वहशत  पाँव  फैलाती नहीं 
याँ    तो   हम   बातें   बनाते   हैं   हज़ारों   ऐ  ज़फर 
जा  के  वाँ   कोई   भी  हमसे  बात  बन  आती नहीं 


                 साभार : ज़फर 
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आहे-सोजाँ =जलती आह 
बद-अस्ल=दुष्ट 
नेको-सिफ़ात =अच्छी आदत वाला 
जौहरे-जाती =निज गुण 
खूब-ओ-जिश्त=अच्छा-बुरा 
बल =लेकिन 
बेदीदे =आँख 
हमसरी=बराबरी 
आरिज़ =गाल 
बदामन =नीचे तक    



6 comments:

  1. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (17-3-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  2. खूबसूरत गज़ल चुन कर लायी हैं ...

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  3. आनन्द आया इस प्रस्तुति पर.

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  4. बेहद ही खुबसुरत गजल है। इसकी तारीफ में शब्द कम पड़ जाएगें। आभार। होली की शुभकामनाएॅ।

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  5. सुन्दर प्रस्तुति.

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  6. वन्दना जी ,संगीता जी ,उडन तश्तरी जी ,एहसास जी,कुंवर कुसुमेश जी
    उत्साहवर्धन के लिये आभारी हूं .....

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