साथी , कर न आज दुराव !
खींच ऊपर को भ्रुओं को ,
रोक मत अब आंसुओं को ,
सह सकेगी भार कितना यह नयन की नाव !
साथी , कर न आज दुराव !
व्यक्त कर दे आज अश्रु-कण से ,
आह से , अस्फुट वचन से ,
प्राण-तन मन को दबाए जो हृदय के भाव |
साथी , कर न आज दुराव !
रो रही बुलबुल विकल हो
इस निशा में धैर्य - धन खो ,
वह कहीं समझे न उसके ही ह्रदय में घाव !
साथी , कर न आज दुराव !
साभार : बच्चन
बहुत अच्छी लगी बच्चन जी की यह कविता.
ReplyDeleteसादर
:) :)
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