कीजे ना दस में बैठ के आपस की बातचीत
पहुचेगी दस हजार जगह दस की बातचीत
कब तक रहें ख़ामोश कि ख़ातिर से आपकी
हमने बहुत सुनी कसो - नाकस की बातचीत
मुद्दत के बाद हज़रते - नासेह ! करम किया
फ़रमाइए मिज़ाजे - मुक़द्दस की बातचीत
पर तर्के- इश्क़ के लिए इर्शाद कुछ न हो
मैं क्या करूं नहीं यह मेरे बस की बातचीत
क्या याद आ गया है ज़फ़र पंजा - ए - निगार
कुछ हो रही है बंदो - मुखम्मस की बातचीत
साभार : ज़फ़र
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कसो - नाकस =किस -किस की
मिज़ाजे - मुक़द्दस = पवित्र मिज़ाज
इरशाद = आज्ञा
पंजा - ए - निगार =महबूब के मेहंदी लगे हाथ
बंदो - मुखम्मस = पांच - पांच मिसरों के बंद वाली कविता
पहुचेगी दस हजार जगह दस की बातचीत
कब तक रहें ख़ामोश कि ख़ातिर से आपकी
हमने बहुत सुनी कसो - नाकस की बातचीत
मुद्दत के बाद हज़रते - नासेह ! करम किया
फ़रमाइए मिज़ाजे - मुक़द्दस की बातचीत
पर तर्के- इश्क़ के लिए इर्शाद कुछ न हो
मैं क्या करूं नहीं यह मेरे बस की बातचीत
क्या याद आ गया है ज़फ़र पंजा - ए - निगार
कुछ हो रही है बंदो - मुखम्मस की बातचीत
साभार : ज़फ़र
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कसो - नाकस =किस -किस की
मिज़ाजे - मुक़द्दस = पवित्र मिज़ाज
इरशाद = आज्ञा
पंजा - ए - निगार =महबूब के मेहंदी लगे हाथ
बंदो - मुखम्मस = पांच - पांच मिसरों के बंद वाली कविता
मैंने इसे अपने पास भी नोट कर के रख लिया है.
ReplyDeleteआप के इस ब्लॉग पर भी बहुत अच्छा लगता है.
सादर
जफर जी की इस बेहतरीन शायरी को प्रेम दिवस की पूर्व संध्या पर प्रस्तुत करने के लिए आपका आभार।
ReplyDeleteज़फर की शायरी से परिचय कराने के लिए आभार..
ReplyDeleteएक से एक शायरी और ग़ज़लें पढ़ने को मिली आपके ब्लॉग पे.. :)
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