यूं तेरी राहगुज़र से , दीवानावार गुज़रे
कांधे पे अपने रख के अपना मज़ार गुज़रे
बैठे हैं रास्ते में बयाबान-ए-दिल सजा कर
शायद इसी तरफ़ से इक दिन बहार गुज़रे
दार-ओ-रसन से दिल तक,सब रास्ते अधूरे
जो एक बार गुज़रे , वो बार - बार गुज़रे
बहती हुई यह नदिया , धुलते हुए किनारे
कोई तो पार उतरे , कोई तो पार गुज़रे
मस्जिद के ज़ेर-ए-साया ,बैठे जो थक-थका कर
बोला हर इक मिनारा ,"तुझ से हज़ार गुज़रे "
कुर्बान इस नज़र पे , मरियम की सादगी भी
साये से जिस नज़र के ,सौ करदिगार गुज़रे
अच्छे लगे हैं दिल को तेरे गिले भी लेकिन
तू दिल ही हार गुज़रा , हम जान हार गुज़रे
मेरी तरह संभाले कोई जो दर्द जानूं
इक बार दिल से हो कर परवरदिगार गुज़रे
साभार : मीना कुमारी
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दार-ओ-रसन से =फ़ांसी के तख्ते से
ज़ेर-ए-साया =छाया में
बैठे हैं रास्ते में बयाबान-ए-दिल सजा कर
ReplyDeleteशायद इसी तरफ़ से इक दिन बहार गुज़रे
मेरी तरह संभाले कोई जो दर्द जानूं
इक बार दिल से हो कर परवरदिगार गुज़रे
AAPKI POST NE MAN KO BHAWUK KAR DIYA
ATI SUDNER
आपका संकलन अच्छा लगा। स्व0 मीनाकुमारी की बेहतरीन नज़्में भी शामिल कीजिए।
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