तेरे इश्क़ की इंतेहा चाहता हू
मेरी सादगी देख क्या चाहता हू |
सितम हो कि वादा - ए - बेहिज़ाबी
कोई बात सब्र - आज़मा चाहता हू |
ये जन्नत मुबारक रहे ज़ाहिदों को
कि मैं आपका सामना चाहता हू |
कोई दम का मेहमां हू ए अहले-महफ़िल
चिराग़ - सहर हू बुझना चाहता हू |
भरी बज़्म में राज़ की बात कह दी
बड़ा बेअदब हू सज़ा चाहता हू |
साभार : इक़बाल
मेरी सादगी देख क्या चाहता हू |
सितम हो कि वादा - ए - बेहिज़ाबी
कोई बात सब्र - आज़मा चाहता हू |
ये जन्नत मुबारक रहे ज़ाहिदों को
कि मैं आपका सामना चाहता हू |
कोई दम का मेहमां हू ए अहले-महफ़िल
चिराग़ - सहर हू बुझना चाहता हू |
भरी बज़्म में राज़ की बात कह दी
बड़ा बेअदब हू सज़ा चाहता हू |
साभार : इक़बाल
अच्छी गजल। इकबाल जी की इस गजल पर किसी शायर का एक शेर याद आ गया,
ReplyDelete'चाहे कितने भी कर लो जुल्मो-सितम,
मुझको मंजूर है हर सजा आपकी।'
बहुत अच्छी लगी इकबाल साहब की यह गज़ल.
ReplyDeleteसादर