Tuesday, February 1, 2011

" हकीकते --हुस्न "

खुदा से हुस्न ने  इक रोज़ यह सवाल किया |
जहां में क्यों न मुझे  तूने    लाज़वाल किया ?


मिला जवाब कि तस्वीरखाना    है  दुनिया |
शबे- दराज अदम का  फ़साना  है  दुनिया  ||


हुई  है  रंगे - तग्य्युर से  जब  नमूद इसकी |
वही हसीं  है   हकीक़त जवाल  है  जिसकी ||


कहीं करीब  था ये  गुफ्तगू कमर  ने  सुनी |
फलक  पे आम हुई  अख्तरे -सहर ने सुनी ||


सहर ने तारे से सुन कर सुनाई शबनम को |
फलक की बात बता दी जमीं के महरम को ||


फिर आये  फूल के आंसू  पयामे  शबनम  से |
कली का नन्हा सा दिल खून हो गया गम से ||


चमन से  रोता  हुआ  मौसमे - बहार  गया |
शबाब  सैर  को  आया  था  सोगवार  गया  ||  


                                       साभार : इकबाल
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लाजवाल =अमर 
शबे- दराज =लम्बी रात 
अदम =मृत्यु 
रंगे -तग्य्युर =परिवर्तनशीलता  के रंग से 
जवाल  = मिटना
कमर =चांद 
अख्तरे-सहर =सुबह का तारा 
महरम = भेदी 
सोगवार = उदास 

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