हर इक सूरत हर इक तस्वीर मुबहम होती जाती है
इलाही , क्या मिरी दीवानगी कम होती जाती है
ज़माना गर्मे - रफ्तारे - तरक्क़ी होता जाता है
मगर इक चश्मे -शायर है की पुरनम होती जाती है
यही जी चाहता है छेड़ते ही छेड़ते रहिये
बहुत दिलकश अदाए -हुस्ने -बरहम होती जाती है
तसव्वुर रफ़्ता - रफ़्ता इक सरापा बनाता जाता है
वो इक शै जो मुझी में है ,मुजस्सिम होती जाती है
वो रह-रहकर गले मिल-मिलके रुख़सत होते जाते है
मिरी आँखों से या रब ! रौशनी कम होती जाती है
"जिगर " तेरे सुकूते - ग़म ने ये क्या कह दिया उनसे
झुकी पड़ती है नज़रे ,आंख पुरनम होती जाती है
साभार : जिगर मुराबादी
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मुबहम =अस्पष्ट
चश्मे - शायर =शायर की आंख
अदाए-हुस्ने-बरहम =नाराज़गी में सौन्दर्य की अदा
तसव्वुर =ध्यान
सरापा =साकार
मुजस्सिम = साकार
सुकूते -ग़म =ग़म के कारण चुप्पी
उर्दू शब्दों के अर्थ देने से समझने में बहुत सरलता रहती है.
ReplyDeleteइसे पढवाने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.
सादर
बेहतरीन।
ReplyDeleteसंकलन को समर्थन देने के लिये शुक्रिया !
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