दिन कटा , जाइए अब रात किधर काटने को
जब से वो घर में नहीं , दौड़े है घर काटने को
हाए सैयाद तो आया मिरे पर काटने को
मैं तो ख़ुश था कि छुरी लाया है सर काटने को
अपने आशिक़ को न खिलवाओ कनी हीरे की
उसके आसूं ही किफ़ायत हैं जिगर काटने को
वो शजर हु न गुलो - बार न साया मुझमें
बागबां ने लगा रक्खा है मगर काटने को
शाम से ही दिले - बेताब का है ज़ौक ये हाल
है अभी रात पड़ी चार पहर काटने को
साभार : ज़ौक
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सैयाद = शिकारी
किफ़ायत = काफ़ी
शजर = पेड़
गुलो - बार =फूल- फल
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