मोहब्बत तर्क की मैंने , गिरेबां सी लिया मैंने
ज़माने ! अब तो खुश हो ,ज़हर ये भी पी लिया मैंने
अभी ज़िंदा हूं लेकिन सोचता रहता हूं ख़लवत में
कि अब तक किस तमन्ना के सहारे जी लिया मैंने
उन्हें अपना नहीं सकता मगर इतना भी क्या कम है
कि कुछ मुद्दत हसीं ख़्वाबों में खो कर जी लिया मैंने
बस अब तो दामने - दिल छोड़ दो बेकार उम्मीदों
बहुत दुख सह लिए मैंने , बहुत दिन जी लिया मैंने
साभार : साहिर लुधियानवी
lajawab
ReplyDeleteaabhar
बहुत खूब्…………आभार्।
ReplyDeleteआपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (26.02.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.uchcharan.com/
ReplyDeleteचर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
bahut achchhe sher hain. dhanywaad !
ReplyDeleteसाहिर लुधियानवी जी को पढ़ कर मन आनंदित हो गया !
ReplyDeleteशुभकामनाएँ !